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REPORTED BY : डॉ. दशरथ यादव
EDITED BY : लक्ष्मण कुमार चौधरी
EDITED BY : लक्ष्मण कुमार चौधरी
यह कहानी उन अनगिनत लड़कियों की है जो बचपन से जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही सपनों के जाल में फंसकर अपना रास्ता भटक जाती हैं। यह कहानी एक ऐसे वाकये पर आधारित है, जिसने एक लड़की को शिकारी के चंगुल से बचा लिया।
16 सितंबर का दिन था जब मुझे दिल्ली में एक महत्वपूर्ण काम के सिलसिले में जाना पड़ा। मैंने तुरंत ही कैफियत एक्सप्रेस का स्लीपर टिकट बुक किया और रवाना हो गया। ट्रेन में बैठने के कुछ ही घंटे बाद, एक गोरी सी, सलवार सूट पहने, नाजुक सी लड़की एक बैग लिए मेरी सीट पर आकर एक किनारे बैठ गई। मैं उस समय एक मैगजीन पढ़ रहा था, लेकिन उसके बार-बार इधर-उधर देखने और मुझ पर निगाह डालने से मेरा ध्यान उसकी तरफ खींच गया। उसकी आंखों में अनजाना सा डर और घबराहट झलक रही थी, शायद सोच रही थी कि कहीं मैं उसे अपनी सीट से उतार न दूं।
मैंने उससे सहजता से पूछा, "कहां जाना है?"
लड़की ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा, "दिल्ली।"
फिर मैंने पूछा, "तुम्हारी सीट कहां है?"
उसने धीरे से जवाब दिया, "मेरे पास जनरल टिकट है।"
मैंने कहा, "कोई बात नहीं, अभी टीटी आएगा, तुम उससे टिकट बनवा लेना, शायद तुम्हें सीट भी मिल जाए।"
लड़की ने सहमति में सिर हिलाया, "जी, मैं बनवा लूंगी, लेकिन तब तक बैठने दीजिए।"
मैंने उसे बैठने की इजाजत दे दी। थोड़ी देर बाद, टीटी आया और उसने स्लीपर का टिकट तो बना दिया, लेकिन सीट नहीं मिल सकी। लड़की ने चुपचाप टीटी को पैसे दिए और फिर मुझसे बातें करने लगी।
"तुम करती क्या हो?" मैंने उससे पूछा।
लड़की ने बताया, "कुछ नहीं, मैं ग्यारहवीं क्लास में पढ़ती हूं।"
मैंने उसकी बातों से थोड़ा और जानना चाहा, "और घर में कौन-कौन हैं तुम्हारे?"
उसने जवाब दिया, "मम्मी-पापा, भाई-बहन सब हैं।"
थोड़ी देर बाद, उसने अपना मोबाइल निकाला और उसमें सिमकार्ड डाला। वह किसी से बात करने लगी, उसकी बातों से लग रहा था कि वह किसी को अपनी स्थिति और स्थान के बारे में बता रही थी।
मैंने उससे पूछा, "पापा से बात कर रही थी? स्टेशन से रिसीव करने के लिए?"
लड़की ने जवाब दिया, "जी नहीं, पापा तो गांव में हैं।"
"फिर भैया रहे होंगे?" मैंने पूछा।
लड़की ने थोड़ा सकुचाते हुए कहा, "नहीं, वो... मेरे... वो थे।"
मैंने पूछा, "कौन वो? क्या तुम्हारी शादी हो गई है?"
लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा, "नहीं, अभी तो नहीं हुई है, लेकिन दो-तीन दिन में हो जाएगी।"
मैंने अंदाजा लगाया, "ओह, तो प्रेम विवाह करने जा रही हो?"
लड़की ने शरमाते हुए कहा, "जी, कुछ ऐसा ही है।"
मैंने उसकी आंखों में चमक देखी, "लड़का क्या करता है?"
लड़की ने बड़े गर्व से बताया, "दिल्ली में नौकरी करता है और कह रहा था कि मुझे भी नौकरी दिला देगा। फिर हम दोनों मौज से रहेंगे।"
मैंने उसकी बातों पर थोड़ा शक करते हुए कहा, "काफी स्मार्ट होगा वो?"
लड़की की मुस्कान और गहरी हो गई, "जी, बहुत स्मार्ट है और बहुत अच्छे स्वभाव का है।"
मैंने उसके दिल में उठते भावों को समझते हुए कहा, "मैं भी प्रेम विवाह किया हूँ।"
लड़की की उत्सुकता और बढ़ गई, "आप भी भागकर शादी किए थे?"
मैंने उसे गंभीरता से समझाने का फैसला किया, "नहीं, मैंने भागकर शादी नहीं की। जिस लड़की से मैं प्यार करता था, वो भी मुझे भागकर शादी करने के लिए कह रही थी, लेकिन मैंने उससे कहा कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं अपने मां-बाप को ठुकरा दूं, जिन्होंने मुझे इतने प्यार से पाला। उनके सपनों और इज्जत को रौंदकर मैं तुम्हारे साथ कैसे भाग सकता हूँ? मैंने उससे कहा कि मैं तुमसे शादी करूंगा, लेकिन अपने माता-पिता की इजाजत से। और एक दिन मेरे माता-पिता मान गए, और हम दोनों की शादी हो गई।"
लड़की ने ध्यान से मेरी बातें सुनीं और थोड़ी सोच में पड़ गई। मैंने पूछा, "क्या तुम्हारे घरवाले जानते हैं कि तुम जिससे प्यार करती हो, वो कौन है?"
लड़की ने जवाब दिया, "नहीं, कोई नहीं जानता।"
मैंने फिर पूछा, "क्या तुमने उसका घर देखा है? उसके घरवाले तुम्हें जानते हैं?"
लड़की ने हिचकिचाते हुए कहा, "नहीं।"
मैंने उसकी मासूमियत पर थोड़ा हंसी करते हुए कहा, "तो तुम्हें नहीं लगता कि यह एक धोखा हो सकता है?"
लड़की ने मेरी बात को टालते हुए कहा, "नहीं, वो ऐसा लड़का नहीं है। वो मुझसे बहुत प्यार करता है।"
मैंने उसे सच्चाई का एहसास कराने का एक उपाय सुझाया, "एक काम करो, उसे फोन करो और कहो कि तुम्हारे मम्मी-पापा मान गए हैं। वो तुम्हारी शादी उससे करने के लिए तैयार हैं और दिल्ली आने के लिए कह रहे हैं। उनसे कहो कि वह अपने मम्मी-पापा को भी बुला ले।"
लड़की ने मेरी बात मानकर फोन किया। उधर से लड़के का गुस्से से भरा जवाब आया, "तुम्हारी जैसी कई लड़कियां आईं और चली गईं। तुम मुझे बेवकूफ बनाने आई हो? पागल समझ रखा है?"
लड़की ने फिर से फोन मिलाया, लेकिन फोन स्विच ऑफ बताने लगा। लड़की का चेहरा उतर गया, उसकी आंखों में आंसू आ गए।
मैंने उसे समझाते हुए कहा, "अब सोचो, अगर वह तुम्हारे साथ कोई बर्बरता करता या एक दिन तुम्हें छोड़कर भाग जाता, तो तुम क्या करती? ऐसे में बहुत सी लड़कियां आत्महत्या कर लेती हैं।"
लड़की रोने लगी, और मैंने उसे दिलासा देते हुए कहा, "अभी तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ा है। अब एक काम करो, अपने घर फोन लगाओ।"
लड़की ने अपने पापा को फोन लगाया, "पापा, मैं बहक गई थी, पर अब ठीक हूँ। कल तक घर आ जाऊंगी।"
पापा की आवाज में चिंता और राहत का मिला-जुला स्वर था, "बिटिया, कहा हो? हम सब बिना खाए-पिए तुम्हें खोज रहे हैं।"
लड़की ने मुझे धन्यवाद दिया और अगले स्टेशन पर उतरकर दूसरी ट्रेन से अपने घर के लिए रवाना हो गई।
● यह कहानी हमें सिखाती है कि कभी-कभी हम अपनी नासमझी में बड़े खतरों का सामना करने से बच जाते हैं। इस लड़की ने एक गलत कदम उठाने से पहले अपने घर लौटने का सही फैसला किया और अपनी जिंदगी को बर्बाद होने से बचा लिया। हमें यह समझना चाहिए कि परिवार से बढ़कर कुछ नहीं होता, और अपनी सुरक्षा के लिए हमेशा सतर्क रहना चाहिए।
● सीख: जब भी आप किसी निर्णय को लेकर दुविधा में हों, तो अपने परिवार से सलाह लें। प्यार में अंधे होकर ऐसे फैसले न लें, जो आपकी और आपके परिवार की इज्जत को खतरे में डाल दें। जीवन में सही फैसले लेना और अपनों की बातों को सुनना ही सच्ची समझदारी है।
अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो, तो इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं। शायद यह किसी और की जिंदगी में भी बदलाव लाने का जरिया बन जाए।
★ Credit- Viral Vidz 2
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